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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मीयता का माधुर्य और आनंद

आत्मीयता का माधुर्य और आनंद

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4187
आईएसबीएन :81-89309-18-8

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आत्मीयता का माधुर्य और आनंद

पशु पक्षी और पौधों तक में सच्ची आत्मीयता का विकास


अल्वर्ट श्वाइत्जर जहाँ रहते थे, उनके समीप ही बंदरों का एक दल रहता था। दल के एक बंदर और बंदरिया में गहरी मित्रता हो गई। दोनों जहाँ जाते साथ-साथ जाते, कुछ खाने को पाता तो यही प्रयत्न करता कि उसका अधिकांश उसका साथी खाए। कोई भी वस्तु उनमें से एक ने कभी अकेले न खाई। उनकी इस प्रेम भावना ने अल्वर्ट श्वाइत्जर को बहुत प्रभावित किया। वे प्रातः प्रतिदिन इन मित्रों की प्रणय-लीला देखते जाते और एकांत स्थान में बैठकर घंटों उनके दृश्य देखा करते। कैसे भी संकट में उनमें से एक ने भी स्वार्थ का परिचय न दिया। अपने मित्र के लिए वे प्राणोत्सर्ग तक के लिए तैयार रहते, ऐसी थी उनकी अविचल प्रेम निष्ठा।

विधि की विडंबना-बंदरिया कुछ दिन पीछे बीमार पड़ी, बंदर ने उसकी दिन-दिन भर भूखे-प्यासे रहकर सेवा-सुश्रूषा की पर बंदरिया बच न सकी, मर गई। बंदर के जीवन में मानो वज्राघात हो गया। वह गुमसुम जीवन बिताने लगा।

इतर प्राणियों में विधुर विवाह पर प्रायः किसी में भी प्रतिबंध नहीं है। एक साथी के न रहने पर नर हो या मादा अपने दूसरे साथी का चुनाव खुशी-खुशी कर लेते हैं। इस बंदर दल में कई अच्छी बंदरियाँ थीं। बंदर हृष्ट-पुष्ट था। किसी नई बंदरियों को मित्र चुन सकता था। पर उसके अंतःकरण का प्रेम स्वार्थ और कपटपूर्ण नहीं था। पता नहीं, शायद उसे आत्मा के अमरत्व, परलोक, पुनर्जन्म पर विश्वास था, इसलिए उसने फिर किसी बंदरिया से विवाह नहीं किया।

आत्मा जिस धातु की बनी है वह प्रेम के प्रकाश से ही जीवित रहती है। प्रेमविहीन जीवन तो नरक समान लगता है। बंदर ने अपनी निष्ठा पर आँच न आने देने का संकल्प कर लिया होगा तभी तो उसने दूसरा विवाह नहीं किया, पर आत्मीयता की प्यास कैसे बुझे ? यह प्रश्न उसके अंतःकरण में उठा अवश्य होगा, तभी तो उसने कुछ दिन पीछे ही अपने जीवन की दिशा दूसरी ओर मोड़ दी। प्रेम को सेवा का रूप दे दिया उसने। अभी तक उसने अपनी प्रेयसी बंदरिया को आत्म-समर्पण किया था अब उसने हर दीन-दुःखी में आत्मा के दर्शन करने और सबको प्यार करने का सिद्धांत बना लिया, उससे ही उसे शांति मिली।

बंदर एक स्थान पर बैठा रहता। अपने कबीले या दूसरे कबीले का कोई अनाथ बंदर मिल जाता तो वह उसे प्यार करता, खाना खिलाता, भटक गए बच्चे को ठीक उसकी माँ तक पहुँचाकर आता, लड़ने वाले बंदरों को अलग-अलग कर देता। इसमें तो वह कई बार अति उग्र पक्ष को मार देता था। पर तब तक चैन न लेता जब तक उनमें मेल-जोल नहीं करा देता। उसने कितने ही वृद्ध, अपाहिज बंदरों को पाला, कितनों ही का बोझ उठाया। बंदर की इस निष्ठा ने ही अल्वर्ट श्वाइत्जर को एकांतवादी जीवन से हटाकर सेवाभावी जीवन बिताने के लिए अफ्रीका जाने की प्रेरणा दी। श्वाइत्जर बंदर की इस आत्म-निष्ठा को जीवन भर नहीं भूले।

सेन्टियागो की धनाड्य महिला श्रीमती एनन ने पारिवारिक कलह से ऊबकर जी बहलाने के लिए एक भारतीय मैना पाल ली। मैना जबसे आई तभी से उदास रहती थी। ऐनन की बुद्धि ने प्रेरणा दी, संभव है उसे भी अकेलापन कष्ट दे रहा हो। सो दूसरे दिन एक और तोता मोल ले लिया। तोता और मैना भिन्न जाति के दो पक्षी भी पास आ जाने पर परस्पर ऐसे घुलमिल गए कि एक के बिना दूसरे को चैन ही न पड़ता।

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    अनुक्रम

  1. सघन आत्मीयता : संसार की सर्वोपरि शक्ति
  2. प्रेम संसार का सर्वोपरि आकर्षण
  3. आत्मीयता की शक्ति
  4. पशु पक्षी और पौधों तक में सच्ची आत्मीयता का विकास
  5. आत्मीयता का परिष्कार पेड़-पौधों से भी प्यार
  6. आत्मीयता का विस्तार, आत्म-जागृति की साधना
  7. साधना के सूत्र
  8. आत्मीयता की अभिवृद्धि से ही माधुर्य एवं आनंद की वृद्धि
  9. ईश-प्रेम से परिपूर्ण और मधुर कुछ नहीं

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